साथी कहे तिहार से
तू काहे क्रोधी होय
इक दिन आई ऐसा
मैं उपेक्छित होय
मरहम लगे न सूखे
बीती घाव के दाग
छुट जाय एक पल में
स्वीकृत करिये विचार
जो भोगे सो जाने
इस घाव के मोल
कहे कबीरा भाव से
करिये न साथी तोल
जो जग वैरी तो से
तब साथी संग देत
साथी कहे तिहार से
काहे बियाह रे तू
मेरे मन को अपने पास
बाँट सके न तू .......